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रिक्शा चलाने वाले ग़रीब बाप का बेटा बना IAS अफसर

बनारस शहर में एक बच्चा अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था। खेलते-खेलते उसने अपने एक दोस्त के घर में चला गया। उस दोस्त के पिता ने उसको देखा और गुस्से से उस पर चिल्लाया। पिता ने पूछा, “तुम मेरे घर कैसे आये? तुम्हारा बैकग्राउंड क्या है? तुम्हें हमारे साथ उठा-बैठा नहीं जाना चाहिए।” ये कहकर दोस्त के पिता ने उसे घर से बाहर कर दिया।

दोस्त के पिता के व्यवहार से बच्चा बहुत घबरा गया। उसे समझ नहीं आया कि उसने क्या गलती की। उसे लगा कि वह बस अपने दोस्त के साथ ही घर में खेलने आया था, जैसा कि दूसरे बच्चे करते हैं। उसको क्या गलती हुई?

सामाजिक बैकग्राउंड: आईएएस अफसर बनने का सपना

उस बच्चे के मन में अब “बैकग्राउंड” के बारे में जानने की प्रबल इच्छा पैदा हो गई। अपनी जिज्ञासा को दूर करने के लिए वह बालक अपने एक परिचित व्यक्ति के पास गया, जो कि पढ़ा-लिखा था और किसी बड़ी परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था। इस परिचित व्यक्ति ने बालक को उसके सामाजिक पृष्ठभूमि के बारे में समझाया। बालक को एहसास हो गया कि वह गरीब है और उसका दोस्त अमीर है। उसके पिता रिक्शा चलाते हैं और उसकी सामाजिक परिस्थिति ठीक नहीं है।

अचानक ही बालक ने उस परिचित व्यक्ति से ये पूछ लिया कि सामाजिक बैकग्राउंड को बदलने के लिए क्या किया जा सकता है, तब अनायास ही उस परिचित के मुंह से निकल गया कि आईएएस अफसर बन जाओ, तुम्हारी भी बैकग्राउंड बदल जाएगी।

गोविन्द जायसवाल: गरीबी से आईएएस अफसर तक की अनोखी कहानी

शायद मजाक में या फिर बच्चे का उस समय दिल खुश करने के लिए उस परिचित ने ये बात कही थी। लेकिन, इस बात को बच्चे ने काफी गंभीरता से लिया था। उसके दिल और दिमाग पर इस बात ने गहरी छाप छोड़ी। उस समय छठी क्लास में पढ़ रहे उस बच्चे ने ठान लिया कि वह हर हाल में आईएएस अफसर बनेगा। और जबसे उसने अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए जी-जान लगाकर मेहनत की। तरह-तरह की दिक्कतों, विपरीत परिस्थितियों, और अभावों के बावजूद, वह आगे बढ़कर अपनी लगन, मेहनत, और संकल्प के बल पर आईएएस अफसर बन गया।

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जिस घटना की यहाँ बात हुई है, वह घटना गोविन्द जायसवाल के बचपन की सच्ची घटना है।

रिक्शा चलाने वाले एक गरीब परिवार में जन्मे गोविन्द जायसवाल ने अपने पहले प्रयास में ही आईएएस की परीक्षा पास कर ली थी। आज वह एक कामयाब और नामचीन अफसर हैं।

लेकिन, जिन मुश्किल हालातों और अभावों में गोविन्द ने अपनी पढ़ाई की वो किसी को भी तोड़ सकती हैं। अक्सर आम लोग इन हालातों और अभावों से हार जाते हैं और आगे नहीं बढ़ पाते। लेकिन गोविन्द ने जो हासिल कर दिखाया है, वो बड़ी मिसाल है। गरीब परिवार में जन्म लेने वाले बच्चे-युवा और दूसरे लोग भी गोविन्द की कामयाबी की कहानी से प्रेरणा ले सकते हैं।

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संघर्ष से सफलता: गोविन्द की कहानी

गोविन्द के पिता नारायण जायसवाल बनारस में रिक्शा चलाते थे। रिक्शा ही उनकी कमाई का एक मात्र साधन था। रिक्शे के दम पर ही सारा घर-परिवार चलता था। गरीबी ऐसी थी कि परिवार के सारे पाँचों सदस्य बस एक ही कमरे में रहते थे। पहनने के लिए ठीक कपड़े भी नहीं थे। गोविन्द की माँ बचपन में गुजर गई थीं। तीन बहनें गोविन्द की देखभाल करती, पिता सारा दिन रिक्शा चलाते, फिर भी ज्यादा कुछ कमाई नहीं होती थी। बड़ी मुश्किल से दिन कटते थे। बड़ी-बड़ी मुश्किलें झेलकर पिता ने गोविन्द की पढ़ाई जारी रखी। चारों बच्चों की पढ़ाई और खर्चे के लिए पिता ने दिन-रात मेहनत की।

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कठोर सर्दी हो, तेज गर्मी, या फिर जोरदार बरसात, पिता ने रिक्शा चलाया और बच्चों का पेट भरा। एक दिन जब गोविन्द ने देखा कि तेज बुखार के बावजूद उसके पिता रिक्शा लेकर चले गए, तब उसका संकल्प और भी मजबूत हो गया कि उसे किसी भी कीमत पर आईएएस अधिकारी बनना है। बचपन से ही गोविन्द ने कभी भी पिता और बहनों को निराश नहीं किया। भले ही उसके पास दूसरे बच्चों जैसी सुविधाएं नहीं थीं, उसने खूब मन लगाकर पढ़ाई की और हर परीक्षा में अव्वल नंबर पाये।

गोविन्द के घर के आसपास कई फैक्ट्रियां थीं। इन फैक्ट्रियों में चलने वाले जेनरेटरों की आवाज परिवारवालों को बहुत परेशान करती थी। तेज आवाजों से बचने के लिए गोविन्द कानों में रुई डालकर पढ़ाई करता।

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गोविन्द को कुछ लोग अक्सर ताने भी मारकर परेशान करते। उसे पढ़ता-लिखता देखकर आस-पास के कुछ लोग ताने मारते कि – “कितना भी पढ़ लो बेटा, चलाना तो तुम्हें रिक्शा ही है”। लेकिन, गोविन्द पर इन बातों और तानों का कोई असर नहीं पड़ा।

गरीबी के थपेड़े झेलते किसी तरह जीवन आगे बढ़ रहा था कि हालत उस समय और भी बिगड़ गए जब पिता के पाँव में सेप्टिक हो गया।

सेप्टिक की वजह से पिता का रिक्शा चलाना नामुमकिन हो गया। घर-परिवार चलाने के लिए पिता ने रिक्शा किराये पर दे दिया। पिता की मेहनत की वजह से गोविन्द की बहनों की शादी हो पायी थी।

इन सब के बीच गोविन्द ने ही अच्छे नंबरों से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर ली। उसने आईएएस अफसर बनने का अपना सपना साकार करने के लिए कोचिंग लेने का मन बनाया। कोचिंग के लिए गोविन्द को बनारस से दिल्ली जाना पड़ा। दिल्ली में भी दिन मुश्किलों भरे ही रहे।

छात्रों को ट्यूशन पढ़ाकर गोविन्द ने खर्चों के लिए रुपये जुटाए। कई बार तो गोविन्द ने दिनभर में सिर्फ एक बार भोजन किया और अपना काम चलाया। आईएएस की परीक्षा में पास होने के मकसद से गोविन्द ने हर दिन कम से कम १२-१३ घंटे तक पढ़ाई की। कम खाने और ज्यादा पढऩे से हालात ऐसे हो गए कि गोविन्द की तबीयत बिगड़ गई और उसे डॉक्टर के पास ले जाना पड़ा। डॉक्टर ने सलाह दी कि अगर कुछ समय के लिए पढ़ाई को नहीं रोका गया तो हालत और भी बिगड़ जाएगी और बहुत नुकसान होगा।

गोविन्द जायसवाल: अभावों को छोड़ कर सपनों की ऊंचाई पर

लेकिन, सिर्फ लक्ष्य की ओर देख रहे गोविन्द ने किसी की ना सुनी और अपनी पढ़ाई जारी रखी। इस मेहनत और संकल्प का नतीजा ये निकला कि गोविन्द पहले ही प्रयास में आईएएस परीक्षा पास कर ली। गोविन्द ने आईएएस (सामान्य वर्ग) परीक्षा में 48वीं रैंक हासिल की। गोविन्द ने हिंदी माध्यम से अव्वल नंबर पाने का खिताब भी अपने नाम किया।

महत्वपूर्ण बात ये भी है कि गोविन्द को अपनी पढ़ाई और करियर के सम्बन्ध में परिवार से कोई मार्गदर्शन नहीं मिला। लेकिन, कठिनाइयों के दौर में बहनों ने गोविन्द का खूब साथ दिया। हमेशा उसकी हौसलाअफजाही की। गोविन्द की हर मुमकिन मदद की, माँ की तरह प्यार-दुलार दिया। कुछ दोस्तों और टीचरों ने भी समय-समय पर सही सलाह दी। आईएएस परीक्षा की तैयारी में दिल्ली के ‘पातंजलि इंस्टीट्यूट’ से भी मदद मिली। यहाँ पर धर्मेंद्र कुमार नाम के शख्स ने गोविन्द की सबसे ज्यादा मदद की।

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दिलचस्प बात ये भी है कि गोविन्द ने अपने जीवन में कभी ‘शॉर्ट कट रास्ता’ नहीं पकड़ा और बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से पढ़ाई-लिखाई की। मेहनत बहुत ज्यादा की। अभावों को आड़े आने नहीं दिया।

आईएएस परीक्षा के लिए विषय चुनने के विषय में भी गोविन्द की बात दिलचस्प है। गोविन्द के एक दोस्त के पास इतिहास की काफी किताबें थीं, तो उसने इतिहास को मुख्य विषय चुना। दूसरा विषय दर्शनशास्त्र रखा, क्योंकि इसका सिलेबस छोटा था और विज्ञान पर उसकी पकड़ मजबूत थी।

गोविन्द जायसवाल की यह कहानी लोगों को बहुत कुछ सिखाती है। अक्सर लोग गरीबी, तंग हालात और विपरीत परिस्थितियों को अपनी नाकामी की वजह बताते हैं। लेकिन, गोविन्द ने साबित किया है कि अगर हौसले बुलंद हों, मेहनत की जाए, संघर्ष चलता रहे तो अभावों और गरीबी में भी जीत हासिल की जा सकती है। सपनों को साकार करने के लिए परिस्थितियों और कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए। अभावों को दूर करने के लिए मेहनत और संघर्ष ही सफलता के सूत्र हैं। इस बात में भी दो राय नहीं कि अभाव के प्रभाव ने ही गोविन्द को एक बड़ी कामयाबी हासिल करने का दृढ़ संकल्प लेने पर मजबूर किया था। और, यह संकल्प पूरा हुआ कड़ी मेहनत और निरंतर परिश्रम के साथ।

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